बचपनिया देशभक्ति
मेरे जीवन की यह बेवकूफ़ी भरी घटना काफ़ी पुरानी यानी भारत-चीन युद्ध यानी सन १९६२ की है। तब मैं लगभग ८ साल का था। पिताजी तब मध्य प्रदेश के कौलारस में विद्यालय निरीक्षक थे। उनके साथ रेडियो पर युद्ध के समाचारों में युद्ध के लिए धन-सोने और घायल सैनिकों के लिए रक्तदान के बारे में सुनता था। एक दिन मैंने भी जवानों के लिए खून देने का निश्चय कर लिया।
रसोई से निकल की पॉलिश वाला पीतल एक बड़ा गिलास ले लिया और पिताजी के दाढ़ी बनाने के सामान में से एक ब्लेड भी ले लिया। आंगन में एक पेड़ के नीचे बैठकर मैने अपने बायें हाथ की पहली उंगली (तर्ज़नी) पर नाखून से लगभग १/२ इंच ऊपर ब्लेड से एक बड़ा कट मार दिया। अपने बायें हाथ को गिलास में लटका दिया और दायें से गिलास को ढंक लिया ताकि जवानों को दिया जाने वाला खून धूल आदि से दूषित न हो जाए।
तभी मेरी माताजी ने आकर देख लिया। वे घबरा गयीं। संयोग से पिताजी घर पर ही थे। वे भी आ गये।
उन्होंने खून बहना बन्द करने के लिए तुरन्त मेरा हाथ ऊंचा किया और पट्टे बांधी। बाद में उन्होंने समझाया कि जवानों के लिए रक्तदान कैसे किया जाता है। तुम्हारे जैसे बच्चों का खून नहीं लिया जाता। ऐसी बेवकूफ़ी अब कभी मत करना।
अनेक बार मेरी इस बेवकूफ़ी की चर्चा हमारे यहां हुई। अब भी मेरी उंगली पर कटे का हलका निशान मौजूद है- बचपन की देशभक्ति के चिन्ह के रूप में!
• कार्टूनिस्ट चन्दर
रसोई से निकल की पॉलिश वाला पीतल एक बड़ा गिलास ले लिया और पिताजी के दाढ़ी बनाने के सामान में से एक ब्लेड भी ले लिया। आंगन में एक पेड़ के नीचे बैठकर मैने अपने बायें हाथ की पहली उंगली (तर्ज़नी) पर नाखून से लगभग १/२ इंच ऊपर ब्लेड से एक बड़ा कट मार दिया। अपने बायें हाथ को गिलास में लटका दिया और दायें से गिलास को ढंक लिया ताकि जवानों को दिया जाने वाला खून धूल आदि से दूषित न हो जाए।
तभी मेरी माताजी ने आकर देख लिया। वे घबरा गयीं। संयोग से पिताजी घर पर ही थे। वे भी आ गये।
उन्होंने खून बहना बन्द करने के लिए तुरन्त मेरा हाथ ऊंचा किया और पट्टे बांधी। बाद में उन्होंने समझाया कि जवानों के लिए रक्तदान कैसे किया जाता है। तुम्हारे जैसे बच्चों का खून नहीं लिया जाता। ऐसी बेवकूफ़ी अब कभी मत करना।
अनेक बार मेरी इस बेवकूफ़ी की चर्चा हमारे यहां हुई। अब भी मेरी उंगली पर कटे का हलका निशान मौजूद है- बचपन की देशभक्ति के चिन्ह के रूप में!
• कार्टूनिस्ट चन्दर