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कार्टूनेचर फ़ीचर सेवा

Friday, August 22, 2014

धर्मान्तरण

यह क्या-क्यों हो रहा है भैया
कश्मीर घाटी में १० साल पहले ५०% हिंदू थे, आज एक भी हिंदू नहीं बचा ! केरल में १० साल पहले तक ६०% जनसंख्या हिन्दुओ की थी, आज सिर्फ १०% हिंदू केरल में है। कहां गये वे हिन्दू ? पूर्वोत्तर यानी नॉर्थ-ईस्ट (सिक्किम, नगालैंड, मिजोरम, असम आदि) में हिन्दुओं का तेजी से धर्मपरिवर्तन होता रहा हैं। हिंदू हर रोज मारे या भगाए जाते रहे हैं। उन्हें सुरक्षा नहीं मिली।
देश की राजधानी में भी मिशनरियां बड़े चालाकी भरे अन्दाज़ में सक्रिय हैं। अब अनेक सालों से धर्मान्तरण करने वाले व्यक्ति का जाति नाम या उपनाम नहीं बदला जाता। जैसे पहले धर्मान्तरण के बाद राम लुभाया चौधरी का नाम राम लुभाया डिसूजा या जॉर्ज वगैरह हो जाता था। अब उसका नाम राम लुभाया चौधरी ही बना रहेगा। 
गम्भीर हालत में अस्पतालों के आईसीयू में भर्ती मरीजों और उनके परिजनों की स्थिति और भावनाओं का शोषण करते हुए ४-६ मिशनरी के लोग प्रार्थना करते हैं। कुछ ही देर में प्रार्थना में ‘परमेश्वर" शामिल हो जाते हैं। यदि मरीज ठीक हो गया तो ये लोग उसके घर जाकर प्रार्थना करने पर जोर देते हैं। ज्यादातर लोग मान जाते हैं क्योंकि मरीज उनकी प्रार्थना से ही ठीक हुआ है- ऐसा उन्हें बताया जाता है। कई मामलों में धर्मान्तरण कराने में सफ़लता मिल जाती है। तमाम बड़े अस्पतालों में ड्यूटी कर रहे नर्सिंग स्टाफ़, वार्ड ब्वाय और डॉक्टरों में बड़ी संख्या धर्मान्तरित पूर्वोत्तर राज्यों व दक्षिण भारतीयों (केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश आदि) की है। ये और अस्पताल स्टाफ़ के कुछ लोग भी मिशनरियों को पर्याप्त सहयोग देते हैं। ये लोग अपने अभियान की सफ़लता हेतु हिन्दू देवी-देवताओं का नाम शामिल करना भी नहीं भूलते।
यहां लिखे का मैं स्वयं प्रमाण हूं। (चित्र: साभार)

Thursday, August 14, 2014

आज सुबह

हम कब सुधरेंगे 
आज काफ़ी दिनों के बाद निकट के जनकपुरी जिला उद्यान यानी डिस्ट्रिक्ट पार्क (दिल्ली में ही) जाकर डेड़-दो घण्टे बैठने का अवसर मिला। जमकर ऑक्सीजन का सेवन किया। एक सप्ताह पहले तक घर पर मशीन/सिलेण्डर का उपयोग करना पड़ रहा था। यह देखकर कष्ट होता है कि हम खुद को बदल नहीं पाते। या कहें कि ’कौन देखता है!’ सोचकर उचित-अनुचित कुछ भी करते रहते हैं। अब देखिए, पार्क साफ़ सुथरा हो तो अच्छा लगता है। अपने घर में हम ऐसा क्यों नहीं करते? वह हमारा घर है इसीलिए न! यहां थैलियां, गिलास, नाना प्रकार के पाउच आदि कूड़ा-कचरा तो है ही, लोगों ने इसे दारूबाजी का अड्डा भी बना डाला है। एक सेवा (शायद) निवृत सज्जन पास ही खुले आम निवृत हो रहे हैं। यहां कुत्तों द्वारा मस्ती मारना तो मामूली बात है। हम कब सुधरेंगे/बदलेंगे...शायद कभी नहीं...
युवा पीढ़ी का फ़ुटबाल प्रेम

Wednesday, August 13, 2014

कार्टूनिस्ट

कार्टूनिस्ट्स' क्लब ऑफ़ इण्डिया
’कार्टूनिस्ट्स' क्लब ऑफ़ इण्डिया’ कार्टूनिस्टों की संस्था/संगठन का वास्तविक नाम नहीं था। यह किसी कारणवश रखा गया। (क्यों? बाद में बताया जाएगा)
ललित कला महाविद्यालय में प्रवेश मिलने के बाद ही (१९७८) अधिकतम कार्टूनिस्टों को जोड़कर अपने औरउनके के लिए एक मंच स्थापित करने की मेरी अभिलाषा थी। अपनी ओर से मैंने खूब प्रयास किया। हर मौसम में भागता रहा। नतीजा संतोषजनक नहीं निकला पर किसी तरह शुभारम्भ तो हुआ, यही मुझे अच्छा लगा। यह अलग बात है कि मैं लगभग पूरे मामले में चन्दर को अलग-थलग रखने का ही प्रयास जारी रहा। आज भी जारी है...
बाकी फ़िर।
यहां प्रस्तुत है ’कार्टूनिस्ट्स' क्लब ऑफ़ इण्डिया’ का एक पत्र ०९/०७/१९९० और एक पुराने कार्टूनिस्ट का सदस्यता फ़ॉर्म (छाया प्रति)
http://cartoonistchander.blogspot.in/
एक पत्र
सदस्यता फ़ॉर्म

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