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Wednesday, September 5, 2012

नमन

आज शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को नमन 
स्वर्गीय वीर सिंह (पूर्व प्राचार्य)
मैं आज अन्य शिक्षकों के अलावा अपने शिक्षक पिता स्वर्गीय वीर सिंह जो मध्य प्रदेश के धमधा, जिला दुर्ग (अब छत्तीसगढ़ में) से प्राचार्य पद से सेवा निवृत हुए, को भी सादर नमन करता हूं। वे मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के बिजरौनी और बामौर कलां में माध्यमिक विद्यालयों में प्रधान अध्यापक और कौलारस, नरवर तथा रन्नौद में सहायक विद्यालय निरीक्षक के रूप में कार्य करने के बाद होशंगाबाद के सेमरी हरचन्द और फ़िर दुर्ग के धमधा में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (कन्या) के प्राचार्य रहे। बिजरौनी और बामौर कलां में उन्होंने विद्यालय के अलावा छात्रों को अलग से बिना कोई ट्यूशन फ़ीस लिए बिना किसी भेदभाव के जमकर पढ़ाया जिसके अच्छे परिणाम भी सामने आये। छात्रों पर छाए अंग्रेजी के भय को दूर करने के लिए उन्होंने अंग्रेजी सीखने को लेकर एक पतली सी पुस्तक भी १९५४ में लिखी थी। विद्यालय निरीक्षक रहते हुए इकहरे शरीर के इस स्वामी ने अन्य कई जिम्मेदारियां निभाते हुए साइकल द्वारा लगभग रोजाना ५०-६० किलोमीटर अपने सहायक के साथ दूर-दराज के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर यात्राएं कीं। बिना कोई पूर्व सूचना दिए विद्यालयों का खूब निरीक्षण किया जिसके कारण कई कामचोर और दबंग अध्यापकों की धमकियां भी उन्हें मिलीं पर वे इससे वे डरे नहीं और प्रेम से लोगों को समझा-बुझाकर अपना कर्त्तव्य निभाते रहे। वे व्यवस्था में सुधार के लिए लगातार लगे रहे। उनके एक पूर्व छात्र ने मुझे बताया कि उसके परिवार की बहुत खराब आर्थिक स्थिति के चलते ‘गुरूजी’ ने बहुत मदद की- उच्च शिक्षा दिलाने तक। वे ऐसी बातों की किसी से जरा भी चर्चा नहीं करते थे। अपने वेतन में से वे ऐसे कार्यों में सामर्थ्य से अधिक खर्च करते रहते थे। वे पूरा जीवन मेहनती, ईमानदार और परोपकारी रहे। उनकी पढ़ाने के अलावा स्वयं पढ़ने में भी बहुत रुचि थी। धर्म, योग, भूगोल आदि पर पढ़ना उन्हें प्रिय था। गीता प्रेस गोरखपुर व अन्य प्रकाशनों से भी डाक द्वारा वे नियमित रूप से कल्याण पत्रिका और काफ़ी पुस्तकें मंगाते रहते थे। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के चलते हाई स्कूल के बाद वे आगरा के एसएन हॉस्पीटल में १०-१२ घण्टे ड्यूटी करने के बाद ढिबरी या कैरोसिन लेम्प की रोशनी में पढ़ाई कर स्नातक हुए। बाद में एलटी व साहित्य रत्न भी किया। एमए (भूगोल) काफ़ी बाद में विद्यालय निरीक्षक रहते हुए किया। उनका परिवार मथुरा जिले के एक गांव का काफ़ी समर्थ-समृद्ध और बड़ा परिवार था जो पांच बार डकैतियां पड़ने के बाद परेशान हो अपनी जमीन-जायदाद यूंही छोड़कर आगरा और मथुरा में बस गया। मैं विज्ञान विषय लेकर पढ़ रहा था पर मेरी रुचि कला में थी सो परीक्षा में उत्तीर्ण होना दूर की कौड़ी रहा। खींचखांचकर हायर सेकंडरी किया। इस बीच कभी उन्होंने पेन-पेन्सिल तो दूर सरकारी सामान में से एक कागज तक नहीं लेने दिया। एक बार मेरे द्वारा एक कार्बन पेपर चुराकर लेने पर पोल खुलते ही मुझे बहुत डांटा। हां, मेरे चित्र-कार्टून बनाने पर उन्होंने कभी आपत्ति नहीं की और पत्र-पत्रिका-पुस्तक, कागज, पेन्सिल, स्याही, क्रोक्विल, ब्रश, रंग आदि दिलाने में कभी कंजूसी नहीं दिखाई। मुझे सदा प्रेरित किया। कौलारस, नरवर, मगरौनी आदि गांवों में दूरदूर तक कोई चित्रकार या कला शिक्षक नहीं था सो मुझे कोई मार्गदर्शन नहीं मिल सका। जो किया, खुद किया। अपने आदर्श शिक्षक पिता का में सदा ऋणी रहूंगा। उन्हें पुन: सादर नमन!
• टी.सी. चन्दर
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1 comment:

  1. Very nice and inspiring. Aap k Pitaji ko Shat-shat Naman Chander Bhai.

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